हास्यास्पद है पसमांदा समाज को अनदेखा करने वाला सपा सुप्रीमों कर रहा सामाजिक न्याय की मांग: वसीम राईन
बाराबंकी। सपा मुखिया अखिलेश यादव जब जातीय जनगणना की मांग करते हैं तो यह सवाल उठाना लाजिमी हो जाता है कि क्या उन्होंने अपने ही संगठन में उस सामाजिक न्याय की झलक दिखाई है जिसकी बात वो देशभर में करते फिरते हैं? यह बात आल इंडिया पसमान्दा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसीम राईन ने अपने बयान में कही। उन्होंने कहा कि पसमान्दा मुसलमान, जो मुस्लिम समाज का सबसे वंचित, पिछड़ा और मेहनतकश तबका है, क्या समाजवादी पार्टी ने इन्हें उनकी आबादी के अनुपात में राजनीतिक हिस्सेदारी दी? कितनों को विधानसभा या लोकसभा का टिकट दिया गया? कितनों को संगठन में नेतृत्व की भूमिका दी गई? और कितनों को उस मंच तक पहुंचाया गया जहां से वे अपने समाज की आवाज बुलंद कर सकें?
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने कहा कि जातीय जनगणना का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि यह साफ हो जाएगा कि मुस्लिम समाज के भीतर सबसे बड़ी हिस्सेदारी पसमान्दा समाज की है लेकिन सवाल यह है कि जो नेता आज इस जनगणना की बात कर रहे हैं, उन्होंने खुद कभी इन तबकों को उनकी सही हिस्सेदारी दी? सच्चाई यह है कि वर्षों से पसमान्दा समाज को सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया गया। जब टिकट बांटने की बारी आई, तब चेहरों का चयन सिर्फ ऊपर के तबकों से हुआ। जब संगठन के पद बांटे गए, तब नजरअंदाज वही लोग हुए जो जमीनी स्तर पर पार्टी के लिए खून-पसीना बहाते हैं। वसीम राईन ने सवाल किया कि अखिलेश यादव से पूछना जरूरी है कि क्या आपकी जातीय जनगणना की मांग सिर्फ एक नारा है या वास्तव में आप सामाजिक न्याय की बुनियाद पर अपने संगठन और नीतियों में बदलाव लाने को तैयार हैं? जब तक यह जवाब नहीं आता, तब तक आपकी बातों पर भरोसा करना मुश्किल है। अब वक्त आ गया है कि नारे नहीं, नीति बदली जाए। और पसमान्दा समाज को वो सम्मान, वो भागीदारी दी जाए जिसका वो हकदार है न कि सिर्फ चुनाव के वक्त इस्तेमाल होने वाला एक सांख्यिकीय हथियार।
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